Saturday, March 29, 2008

हिन्‍दू आस्‍था की नगरी- अमरकंटक


मैकाल की पहाडि़यों में स्थित अमरकंटक मध्‍य प्रदेश के अनूपपुर जिले का लोकप्रिय हिन्‍दू तीर्थस्‍थल है। समुद्र तल से 1065 मीटर ऊंचे इस स्‍थान पर ही मध्‍य भारत के विन्‍ध्‍य और सतपुड़ा की पहाडि़यों का मेल होता है। चारों ओर से टीक और महुआ के पेड़ो से घिरे अमरकंटक से ही नर्मदा और सोन नदी की उत्‍पत्ति होती है। नर्मदा नदी यहां से पश्चिम की तरफ और सोन नदी पूर्व दिशा में बहती है। यहां के खूबसूरत झरने,पवित्र तालाब,ऊंची पहाडि़यों और शांत वातावरण सैलानियों को मंत्रमुग्‍ध कर देते हैं। प्रकृति प्रेमी और धार्मिक प्रवृति के लोगों को यह स्‍थान काफी पसंद आता है। अमरकंटक का बहुत सी परंपराओं और किवदंतियों से संबंध रहा है। कहा जाता है कि भगवान शिव की पुत्री नर्मदा जीवनदायिनी नदी रूप में यहां से बहती है। माता नर्मदा को समर्पित यहां अनेक मंदिर बने हुए हैं,जिन्‍हें दुर्गा की प्रतिमूर्ति माना जाता है। अमरकंटक बहुत से आयुर्वेदिक पौधों मे लिए भी प्रसिद्ध है‍,जिन्‍हें किवदंतियों के अनुसार जीवनदायी गुणों से भरपूर माना जाता है।

क्‍या देखे
धुनी पानी- अमरकंटक का यह गर्म पानी का झरना है। कहा जाता है कि यह झरना औषधीय गुणों से संपन्‍न है और इसमें स्‍नान करने शरीर के असाध्‍य रोग ठीक हो जाते हैं। दूर-दूर से लोग इस झरने के पवित्र पानी में स्‍नान करने के उद्देश्‍य से आते हैं,ताकि उनके तमाम दुखों का निवारण हो सके।

नर्मदाकुंड और मंदिर- नर्मदाकुंड नर्मदा नदी का उदगम स्‍थल है। इसके चारों ओर अनेक मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों में नर्मदा और शिव मंदिर, कार्तिकेय मंदिर, श्रीराम जानकी मंदिर, अन्‍नपूर्णा मंदिर, गुरू गोरखनाथ मंदिर, श्री सूर्यनारायण मंदिर, वंगेश्‍वर महादेव मंदिर, दुर्गा मंदिर, शिव परिवार, सिद्धेश्‍वर महादेव मंदिर, श्रीराधा कृष्‍ण मंदिर और ग्‍यारह रूद्र मंदिर आदि प्रमुख हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव और उनकी पुत्री नर्मदा यहां निवास करते थे। माना जाता है कि नर्मदा उदगम की उत्‍पत्ति शिव की जटाओं से हुई है, इसीलिए शिव को जटाशंकर कहा जाता है।

दूधधारा- अमरकंटक में दूधधारा नाम का यह झरना काफी लो‍कप्रिय है। ऊंचाई से गिरते इसे झरने का जल दूध के समान प्रतीत होता है इसीलिए इसे दूधधारा के नाम से जाना जाता है।

कलचुरी काल के मंदिर- नर्मदाकुंड के दक्षिण में कलचुरी काल के प्राचीन मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों को कलचुरी महाराजा कामदेव ने 1042-1072 के दौरान बनवाया था। मछेन्‍द्रथान और पटालेश्‍वर मंदिर इस काल मंदिर निर्माण कला के बेहतरीन उदाहरण हैं।

सोनमुदा- सोनमुदा सोन नदी का उदगम स्‍थल है। यहां से घाटी और जंगल से ढकी पहाडियों के सुंदर दृश्‍य देखे जा सकते हैं। सोनमुदा नर्मदाकुंड से 1.5 किमी. की दूरी पर मैकाल पहाडि़यों के किनारे पर है। सोन नदी 100 फीट ऊंची पहाड़ी से एक झरने के रूप में यहां से गिरती है। सोन नदी की सुनहरी रेत के कारण ही इस नदी को सोन कहा जाता है।

मां की बगिया- मां की बगिया माता नर्मदा को समर्पित है। कहा जाता है कि इस हरी-भरी बगिया से स्‍थान से शिव की पुत्री नर्मदा पुष्‍पों को चुनती थी। यहां प्राकृतिक रूप से आम,केले और अन्‍य बहुत से फलों के पेड़ उगे हुए हैं। साथ ही गुलबाकावली और गुलाब के सुंदर पौधे यहां की सुंदरता में बढोतरी करती हैं। यह बगिया नर्मदाकुंड से एक किमी. की दूरी पर है।

कपिलाधारा- लगभग 100 फीट की ऊंचाई से गिरने वाला कपिलाधारा झरना बहुत सुंदर और लोकप्रिय है। धर्मग्रंथों में कहा गया है कि कपिल मुनी यहां रहते थे। घने जंगलों,पर्वतों और प्रकृति के सुंदर नजारे यहां से देखे जा सकते हैं। माना जाता है कि कपिल मुनी ने सांख्‍य दर्शन की रचना इसी स्‍थान पर की थी। कपिलाधारा के निकट की कपिलेश्‍वर मंदिर भी बना हुआ है। कपिलाधारा के आसपास अनेक गुफाएं है जहां साधु संत ध्‍यानमग्‍न मुद्रा में देखे जा सकते हैं।

कबीर चबूतरा- स्‍थानीय निवासियों और कबीरपंथियों के लिए कबीर चबूतरे का बहुत महत्‍व है। कहा जाता है कि संत कबीर ने कई वर्षों तक इसी चबूतरे पर ध्‍यान लगाया था। कहा जाता है कि इसी स्‍थान पर कबीर और नानक देव भेंट करते थे और आध्‍यात्‍म व धर्म की बातें मानव कल्‍याण के लिए किया करते थे। कबीर चबूतरे के निकट ही कबीर झरना भी है। मध्‍य प्रदेश के अनूपपुर और दिन्‍डोरी जिले के साथ छत्‍तीसगढ के बिलासपुर की सीमाएं यहां मिलती हैं।

सर्वोदय जैन मंदिर- यह मंदिर भारत के अद्वितीय मंदिरों में अपना स्‍थान रखता है। इस मंदिर को बनाने में सीमेंट और लोहे का इस्‍तेमाल नहीं किया गया है। मंदिर में स्‍थापित मूर्ति का वजन 24 टन के करीब है।

श्रीज्‍वालेश्‍वर महादेव- श्रीज्‍वालेश्‍वर मंदिर अमरकंटक से 8 किमी. दूर सहदोल रोड़ पर स्थित है। यह खूबसूरत मंदिर भगवान शिव का समर्पित है। यहीं से अमरकंटक की तीसरी नदी जुहीला की उत्‍पत्ति होती है। विन्‍ध्‍य वैभव के अनुसार भगवान शिव ने यहां स्‍वयं अपने हाथों से शिवलिंग स्‍थापित किया था और मैकाल की पह‍ाडि़यों में असंख्‍य शिवलिंग के रूप में बिखर गए थे। पुराणों में इस स्‍थान को महा रूद्र मेरू कहा गया है। माना जाता है कि भगवान शिव अपनी पत्‍नी पार्वती से साथ इस रमणीय स्‍थान पर निवास करते थे। मंदिर के निकट की सनसेट प्‍वाइंट है।

Thursday, March 27, 2008

कुम्‍भला गया

मुरझा गया, कुम्भला गया
फूल जो अभी कल तक
खुशबू बिखेरा करता था
पर आज अचानक झर गए,
उसकी सांसों के पत्‍ते
होठों की पंखुडि़यों का हिलना बन्‍द हो गया
मूक हो गया सदा के लिए,
बेहद गहरी नींद सो गया
तमाम उम्र महकाया मधुबन
फिक्र कांटों की नहीं ही,
प्रचंड हवा के सहे झोंके
फिर भी मुस्‍काता रहा
तपती धूप में जलकर भी,
जीवन का अर्थ बतलाता रहा
पता नहीं क्‍यों आज उसने,
आंखे अपनी मूंद ली
न जाने क्‍यों अपनी हस्‍ती
शून्‍य में विलीन की
छा गया उपवन में वीराना,
भूल गईं कलियां मुस्‍काना
क्‍या अब केवल अब यादों में ही
रहेगा उसका आना जाना