Thursday, September 26, 2013

एक खतरनाक आदमी

ड्राइवर सीट पर एक खतरनाक
आदमी बैठा है
इस सीट तक वो बेहिसाब
तिकड़म भिडाकर पहुंचा है
उसे प्राप्त है आशीर्वाद
अपने आकाओं का
जिन्हीने अयोग्य होते हुए भी
उसे सौंप दी है चाबी
उसका पास न तो 'लाइसेंस' है,
न ही अनुभव
उसकी सारी डिग्री भी
फर्जी हैं
हालाँकि देखने में नहीं लगता
उसमे कोई कमी है.
बहुत चालाक है वो,
सीट के सभी दावेदार
उसने साज़िश के तहत
ख़त्म कर दिए हैं
गाडी में बैठी सवारियां
सलामत रहें
इसके लिए जरूरी है
उसे गाडी से उतारना ।

Saturday, September 14, 2013

अपराध में भागीदारी

उमस भरी गर्मी में एसी बस देखकर राहत महसूस हुई। भागकर बस में चढ़ा और टिकट लेकर सीट पर कब्जा जमा लिया। ऑफिस टाइम पर बड़े दिनों बाद एसी बस मिली थी। 25 रुपए की टिकट लेकर सोचा कि क्यों न थोड़ी देर की नींद ले ली जाए। यह ख्याल आया ही था कि 13-14 साल के लड़कों का जत्था धड़ाधड़ बस में घुस आया। सफेद शर्ट और नीली पेंट में वे सभी स्कूल में पढ़ने वाले लग रहे थे। ड्राइवर के पास की सीटों पर उन्होंने कब्जा जमा लिया। कंडक्टर ने टिकट लेने के लिए आवाज लगाई लेकिन वे उसे अनुसना कर अपनी बातों में मस्त थे। दोबारा आवाज लगाने पर भी असर नहीं हुआ तो झल्लाकर तीसरी बार कंडक्टर ने टिकट लेने को कहा। एक लड़का बोल पड़ा- 'नहीं ले रहे टिकट।' कंडक्टर ने उन्हें उतारने के लिए बस रुकवाई तो दूसरा छात्र बोला- 'आगे उतरना है।'

कंडक्टर भी अड़ गया था- 'टिकट ले लो, नहीं तो नीचे उतरो।' फिर ड्राइवर से मुखातिब हो कंडक्टर ने चेतावनी दे दी 'आगे सबको उतार दियो, न उतरें तो बस साइड में रोक दियो।' थोड़ा आगे चलकर स्टैंड आ गया और वे लड़के कंडक्टर को गरियाते हुए बस से उतर गए। कंडक्टर भी प्रतिक्रिया में उनके मां-बाप को गालियां दे रहा था। बस जैसे ही आगे बढ़ी, एक जोर की आवाज सुनाई दी। एक पल को लगा जैसे किसी कार या दूसरी बस ने पीछे से टक्कर मार दी हो। मुड़कर देखा तो अपनी बस का पिछला शीशा चकनाचूर हो चुका था। बस से उतारने पर उन लड़कों ने यह कारस्तानी की थी। इसके बाद वे एकदम गोली हो गए थे।

कंडक्टर ने साइड में बस रुकवाई और नीचे उतर गया। सवारियों को भी पता चल गया था कि अब बस आगे नहीं जाएगी। उमस भरी गर्मी में एसी बस ने जो अनुभूति मुझे कुछ देर पहले दी थी वह नदारद हो चुकी थी। कंडक्टर 100 नंबर को फोन कर पुलिस के आने का इंतजार कर रहा था और सवारियों दूसरी बस का। पांच मिनट बाद ही दूसरी एसी बस आ गई और लोगों के साथ मेरे भी पैसे और ज्यादा वक्त बर्बाद होने से बच गया। इस घटना ने मेरे स्कूल और कॉलेज के समय की कुछ घटनाओं की याद ताजा कर दी।

ग्यारह साल पहले बारहवीं में पढ़ाई के दौरान क्लास में पढ़ने वाले कुछ शरारती छात्रों ने साकेत में स्कूल के पास से गुजरने वाली ब्लू लाइन बस से शीशे तोड़ने के साथ ही कंडक्टर की भी पिटाई कर दी थी। वजह आज की घटना वाली ही थी- कंडक्टर का टिकट के लिए पैसे मांगना। अंतर बस इतना है कि पहले जो काम बड़ी क्लास में पढ़ने वाले और कॉलेज जाने वाले छात्र करते थे, अब वही सातवीं और आठवीं के बच्चों का शगल बन गया है। ऐसी घटनाएं अपराध की श्रेणी में तब भी थीं, अब भी हैं। फर्क बस इतना है कि इसमें नाबालिगों की भागीदारी विकास की दावेदारी से कहीं ज्यादा बढ़ी है।

उनकी भूख

Photo Source : India times
उनकी भूख
नहीं मिटती रोटी से
सब्जी-चावल-दाल खाकर
नहीं पेट भरता उनका
उनकी प्यास का पानी से
नहीं है रिश्ता
उन्हें जायका लग चुका है
ताजे गोश्त का
गरमागरम रक्त का
उन्हें पसंद आते हैं
ढेर लाशों के
भूख उनकी वोटों की है..


सिक्कों की खनकती आवाजें
और एक खास किस्म की कुर्सी
जिसके पाए हड्डियों के 

चूर्ण से बने हैं
उसके बीचोंबीच भरा है
मासूमों का मुलायम मांस
उनकी रूह से मवाद
रिसता है दिनरात
उनके हाथों में कानून की
किताबें है
और जेब में रिवाल्वर
रातें उनकी साजिशों में गुजरती है
और फिर धीरे-धीरे
दंगे की आग सुलगती है।