Tuesday, January 8, 2008

गजल

तंग गलियों से निकलकर, आसमान की बात कर
राम को मान और रहमान की भी बात कर

अपने बारे में हमेशा सोचना है ठीक पर
चंद लम्‍हों के लिए, आवाम की भी बात कर

बहारों के मौसम सभी को रास आते हैं मगर
सदियों से सूने पडे़, बियाबान की भी बात कर

तरक्कियां सबके लिए होती नहीं हैं एक-सी
अंतिम सीढ़ी पर खड़े, इंसान की भी बात कर

सिमट गई दुनिया लगती है, शहरों के ही इर्द-गिर्द
गावों में बसने वाले, हिन्‍दुस्‍तान की भी बात कर

टाटा-बिरला-अंबानियों के, कहो किस्‍से खूब पर
आत्‍महत्‍या कर रहे, किसान की भी बात कर

ख्‍वाब अपने कर सभी पूरे मगर
जिन्‍दा रहने के किसी अरमान की भी बात कर

Monday, January 7, 2008

परीक्षा

जिंदगी है एक परीक्षा
जिंदगी से लडना सीख ले
कांटों भरी पथ को तू राही
पथ से गुजरना सीख ले

मत घबरा तू देख समुंदर
उस पार छुपी है मंजिल तेरी
मंजिलों के वास्‍ते
आगे को बढना सीख ले

कट जाएगी रात अंधेरी
हिम्‍मत से तू काम ले
इस अंधेरी रात में
दीए सा जलना सीख ले

व्‍यर्थ नहीं है हार तेरी
इस हार से ले सबक नया
इसी सबस के सहारे
गिरकर संभलना सीख ले

यह समय जो जा रहा है
लौटकर आता नहीं
अपनी हिम्‍मत से तू इसका
रूख बदलना सीख्‍ा ले।

Friday, January 4, 2008

मेरे खुदा

देने वाले दिया तो इतना
कि आंचल में नहीं समाया
और किसी को तूने मालिक
दाने-दाने को तरसाया

कहीं सूखे खेत
प्‍यासे मरे मवेशी
कहीं डूबे गांव नगर
इतना तूने जल बरसाया

किसी के हिस्‍से धूप-धूप दी
किसी के हिस्‍से दी छाया
कोई बना महलों का राजा
किसी को झोपड न मिल पाया

खुदा मेरे जब मिलेगा मुझसे
तब सवाल ये पूछूंगा
तूने अपने बच्‍चों में
अंतर इतना किसलिए बनाया?