Thursday, March 27, 2008

कुम्‍भला गया

मुरझा गया, कुम्भला गया
फूल जो अभी कल तक
खुशबू बिखेरा करता था
पर आज अचानक झर गए,
उसकी सांसों के पत्‍ते
होठों की पंखुडि़यों का हिलना बन्‍द हो गया
मूक हो गया सदा के लिए,
बेहद गहरी नींद सो गया
तमाम उम्र महकाया मधुबन
फिक्र कांटों की नहीं ही,
प्रचंड हवा के सहे झोंके
फिर भी मुस्‍काता रहा
तपती धूप में जलकर भी,
जीवन का अर्थ बतलाता रहा
पता नहीं क्‍यों आज उसने,
आंखे अपनी मूंद ली
न जाने क्‍यों अपनी हस्‍ती
शून्‍य में विलीन की
छा गया उपवन में वीराना,
भूल गईं कलियां मुस्‍काना
क्‍या अब केवल अब यादों में ही
रहेगा उसका आना जाना

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