Wednesday, April 23, 2008

जमाना बदल गया है

लोग कहते हैं जमाना बदल गया है
रहा करते थे जहां वो आशियाना बदल गया है

तोडकर सीमाएं जग की प्रेम अब स्‍वछंद हुआ
मूक बनकर देखता हूं, अंदाज पुराना बदल गया है

बर्बाद कर दे भला, तूफान किसी का घर बार
तूफां में उजडे घर को, फिर से बसाना बदल गया है

लौट जा रे तू मुसाफिर वापस अपनी राहों में
आजकल इस शहर में, रस्‍ता बताना बदल गया है

मेरे सुख में हंसता था, मेरे दुख में रोता था
एहसाह मुझे अब होता है, बेदर्द जमाना बदल गया है

बदहाल बुंदेलखंड

बुंदेलखंड के बांदा जिले का बसहरी गांव जितनी बुरी हालत में इस बार है, शायद ही पहले कभी इतनी बदतर हालत में रहा हो। एक तो पानी नहीं बरसा। खेती चौपट हो गई और दूसरी तरफ चार साल से पड रहे सूखे की मार ने इस इलाके की कमर तोडकर रख दी है। किसानों की फसल तक की लागत नहीं निकल पाई। इस बार न गांव में ताजगी थी और न ही वहां की माटी में सुगंध। थी तो सिर्फ हर ओर बदहाली और कब्रिस्‍तान का सा सन्‍नाटा, भूखा मरता किसान और प्‍यासे मरते मवेशी। कुंए में एक बूंद पानी न था और न ही तालाब में। कामता के पंद्रह बीघा खेत में मात्र चार पसेरी गेहूं हुआ। उसे यह चिंता खाए जा रही है कि इस साल वह अपना पेट कैसे पालेगा। इलाके में चोरी चकारी बढ गई है। राहगीरों को रास्‍ते में ही लूट लिया जाता है, और अंधेरा होते ही लोग घर से बाहर निकलने से घबराते हैं। बसहरी की तरह ही बुंदेलखंड के अधिकांश गावों का हाल है। अगर देश का सबसे बदहाल क्षेत्र इसे कहा जाए जो गलत नहीं होगा। जब से गांव जा रहा हूं, तब से इसे ऐसे ही पाया है। न कोई विकास हुआ और न ही किसी को यहां की सुध है। मात्र कुछ सरकारी नल ही हाल मे यहां लगे हैं जो लोगों की प्‍यास बुझाने का एकमात्र जरिया है। जिस के घर के सामने यह नल लगे हैं, वह दूसरों को पानी न भरने देने की भरपूर कोशिश करता है। उस नल पर अपना अधिकार जताता है। संचार क्रांति और आधुनिकता के प्रतीक एयरटेल का टॉवर गांव में जरूर लग गया है। भूख से मरते किसान को मोबाइल के मोह में फंसाया जा रहा है। अखबारों में पढा की राहुल गांधी बुंदेलखंड के दौरे पर हैं, वे यहां के हालात को जानने और समझने गए हैं। उन्‍होंने कई गांवों का दौरा किया और किसानों की बदहाली देखी लेकिन अगले ही वे आईपीएल के मैच में दिखे। उन्‍हें देखकर हैरानी इस बात की हुई कि यदि कोई सचमुच किसानों और इस क्षेत्र के गरीबों को शुभचिंतक है तो उनकी स्थिति देखकर कोई कैसे चैन से सो सकता है। जो आदमी कल तक यहां की स्थिति का जायजा ले रहा था, लोगों की बदहाली जानकर भी कैसे उसे आईपीएल का मैच सुहा सकता है। कैसे वह उन किसानों के मुरझाए हुए चेहरों को भूलकर खचाखच भरे स्‍टेडियम में मैच का मजा ले सकता है।

Thursday, April 3, 2008

जिन्‍दगी तेरे नाम रही

तेरी गलियों में हरदम
हस्‍ती अपनी बदनाम रही
हजार कोशिश की मगर
हर कोशिश नाकाम रही
तुम बिन सूना हर दिन बीता
और उदास हर शाम रही
फिर भी जा ओ बेखबर
जिन्‍दगी तेरे नाम रही